The Idea For Education

        The Idea for Education. दोस्तो आज हम बात करेगे The Idea for Education. हम कैसे लोगो को अपने Idea से गरीब लोगो को जो शिक्षा नहीं पा सकते है उन्हें शिक्षित कैसे करे। तो आज में आप को ऐसे ही दो लोग की बात करेगा। जिनकी एक Idea ने लाखो बच्चो की जिंदगी बदल कर रख दी। तो प्लीज मेरी आपसे विनती है की आप सभी ये बात पूरी पढ़ना।

बाबर अली:-

       पश्चिम बंगाल में स्थित बेहरामपुर के कृष्णनाथ कॉलेज में पढ़ता है बाबर अली। हर रोज कॉलेज खत्म होते ही बाबर अली को अपने घर पहुंचने की जल्दी होती है, क्योंकि गंगापुर और उसके आसपास के गांव के छोटे बच्चे बेसब्री से उसके लौट आने का इंतजार कर रहे होते हैं।
The Idea for Education
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       बाबर के लौटने पर ही उन बच्चों का स्कूल शुरू होता है। 19 साल का बाबर ही उनकी स्कूल का हेड मास्टर था। बाबर गांव के उन गिने-चुने बच्चों में से था जिन्हें स्कूल जाने का मौका मिला, लेकिन उनके साथियों का स्कूल न जाना उस नन्हे बाबर को मंजूर नहीं था। इसलिए बाबर जो स्कूल में सीखता था घर आकर अपने साथियों के साथ बांट लेता था।

       बाबर के स्कूल की शुरुआत पेड़ के नीचे पांच दोस्तों के साथ हुई। उस समय की बात बताता हूं बाबर की जुबानी:- "जब बाबर स्कूल से वापस घर आता था तब उन सब बच्चों को इकट्ठा करता था, जो स्कूल नहीं चाहते थे। फिर बाबर ने खेल-खेल में ही उन बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। बाबर उन बच्चों का टीचर बनता और वह बच्चे उनके स्टूडेंट। तब बाबर की उम्र सिर्फ 9 साल की थी और वह पांचवी क्लास में पढ़ता था।"

       एक छोटे से बच्चे की लगन देखकर गांव के लोग बाबर के साथ जुड़ते गए और उनका संगठन बढ़ता गया। बाबर के घर के आंगन में ही एक स्कूल खिल उठा था।

       स्कूल का नाम बाबर ने "आनंद शिक्षा निकेतन" रखा। आनंद शिक्षा निकेतन में सैकड़ों ऐसे बच्चे पढ़ते हैं ल, शायद इन्हें शिक्षा का मौका कभी नहीं मिल पाता। एक बच्चे द्वारा चलाया गया ज्ञान का दीपक कई नानी जिंदगी यों को रोशन कर रहा है। दुनिया में सबसे छोटी उम्र का हेड मास्टर संविधान में लिखे गए बराबरी के आदर्श का सबक सीखा रहा है।

       जब बाबर से पूछा कि," बाबर आपने 9 साल की उम्र में स्कूल शुरू किया हेड मास्टर बन गए। इस उम्र में तो बच्चों का ध्यान खेलकूद में रहता है वह सब छोड़ कर अपने ऊपर इतनी बड़ी जिम्मेदारी क्यों ली?"

       इस प्रश्न का जवाब जब मैंने बाबर के मुख से सुना तो मैं बाबर का मुरीद बन गया। आप भी पढ़िए बाबर का जवाब बाबर ने कहा:-" क्योंकि मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मुझे लगा हर इंसान को अपने समाज के भलाई के लिए अपनी क्षमता के अनुसार जितना हो सके उतना तो करना ही चाहिए"।

       दोस्तों बाबर अली ने बिना किसी पैसे के सिर्फ अपने मन की भावना के बल पर अपने साथियों को अपने सामान बराबर ला खड़ा करने का जो जज्बा दिखाया। अनजाने में ही सही अपने देश के संविधान के आदर्शों का पालन किया है।

       दोस्तों अगर इस पूरी दुनिया में हर कोई बाबर जैसा सोचने लगे तो पूरे समाज में बल्कि पूरी दुनिया में जो शिक्षा और गरीबी के बीच में जो फर्क है उसे मिटाने में देर नहीं लगेगी। पूरा समाज, पूरा देश और पूरी दुनिया में हर कोई हर उस इंसान को शिक्षा मिलेगी, जो गरीबी की वजह से शिक्षा नहीं पा सकता है। आज मैं और पूरी युगल की टीम बाबर को सलाम करते।

       अगर आप मेरी पोस्ट The Importance of Education को पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दी गई लिंक पर क्लिक कीजिए.:-The Importance of Education

       अब जरा सोचिए कि बाबर अली जैसा बिना कोई पैसा खर्च किए इतना बड़ा परिवर्तन ला सकता है, तो सोचिए क्या  क्या असर पैदा होगा कि कोई ऐसा इंसान शिक्षा के क्षेत्र में अपना हाथ आगे बढ़ाएगा। जिसके हाथों में इस काम को बड़े पैमाने पर करने की पूरी ताकत है। तो आइए आगे पढ़ते हैं।

अजीम प्रेमजी:-

       भारत में स्कूल जाने की उम्र के लगभग 14 करोड बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। जब तक ऐसे हालात होंगे तब तक भारत के प्रगति का सपना बस सपना ही रह जाएगा। एक इंसान ने इस परिस्थिति को बदलने की ठानी। वह महान इंसान हैं विप्रो नामक कंपनी के स्थापक अजीम प्रेमजी। अपनी निजी संपत्ति से 8846 करोड़ की राशि उन्होंने शिक्षा के काम में डाल दी। "अजीम प्रेमजी फाउंडेशन"ने मुफ्त शिक्षा देने वाले सैकड़ों सरकारी स्कूलों को बेहतरीन बनाने की कोशिश की है और उस काम का केंद्र बिंदु बने शिक्षक।

       " अब समझो कि एक डॉक्टर गलत काम करे तो मरीज मर सकता है एक इंजीनियर गलत काम करें तो एक ब्रिज गिर सकता है मगर एक शिक्षक गलत काम करें तो पूरा समुदाय समाज ही नष्ट हो जाता है"

       अजीम प्रेमजी फाउंडेशन ने शिक्षकों के साथ रहकर उनकी चुनौतियों को समझा और ट्रेनिंग के सहारा हल ढूंढने की कोशिश कि, वहां पर सरकारी शिक्षक अपने समय में मतलब कि रविवार या जाहेर रजा में वह पहुंच जाते हैं और एकेडमी चलाते हैं।

       साथ ही साथ फाउंडेशन ने स्कूल को समाज का अहम हिस्सा बनाने के लिए कई निराली कोशिशें हुई। कहीं माता-पिता, दादा-दादी को स्कूल के कार्य में शामिल किया गया। तो कहीं बच्चों द्वारा आयोजित शिक्षामेलो ने कई गांव में शिक्षा के प्रति उत्साह प्रेरित किया।

       आज फाउंडेशन ने 25000 सरकारी स्कूलों में 2500000 बच्चों की जिंदगी को संवारने की शुरुआत की है। यह एक ऐसी पहल है जो हमारे सपनों के समाज को दिशा दिखा रही है.
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       जब अजीम प्रेमजी से एक इंटरव्यू में सवाल पूछा कि :-"जब हमारे समाज में या देश में जब लोग दान करते हैं, तो आमतौर पर वह किसी मजहबी संस्था को या धार्मिक संस्था को होता है, लेकिन आपने अपनी कमाई का एक बड़ा सा हिस्सा पढ़ाई-लिखाई में दान किया और सिर्फ दान ही नहीं आपकी फाउंडेशन भी इसमें काम कर रही है। यह ख्याल आपको कैसे आया?"

       दोस्तों इस प्रश्न का जवाब देते हुए अजीम प्रेमजी साहब ने कहा कि:- " मेरा मानना है कि धन दौलत के साथ-साथ इसके सही इस्तेमाल की जिम्मेदारी भी आप पर आती है। इस बात को समझना बहुत जरूरी है। देश का भी इस संपत्ति पर अधिकार है क्योंकि देश से ही आपने उस संपत्ति को कमाई है। इसलिए एक बड़ा हिस्सा हम सामाजिक कामों में इस्तेमाल करेंगे। यह आपकी जिम्मेदारी है। फिर बात आती है कि आप किस क्षेत्र को चुनते हैं? किस काम में आपका विश्वास है? कहां आपको लगता है कि काम करने की ज्यादा जरूरत है? हमने शिक्षा के क्षेत्र को इसलिए चुना, क्योंकि हमें विश्वास था कि एक अलग किस्म का भारत एक ऐसा भारत जिसकी संविधान में कल्पना की गई थी कि उसे बनाने में शिक्षा की एक भूमिका है। इसलिए हमारी पहली प्राथमिकता यह थी कि शिक्षा स्कूलों में शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है। उसमें भी अहमियत रखती है कि पछात विस्तारों की सरकारी स्कूलों में जाने वाली शिक्षा क्योंकि उन स्कूलों में शिक्षा का स्तर काफी खराब होता है। इसके बावजूद सरकार इन स्कूलों पर काफी पैसा खर्च कर रही है।"

       ये था अजीम प्रेमजी का जवाब एकदम ठीक था। हमें उनका धन्यवाद करता चाहिए। अजीम प्रेमजी और उनकी संस्था राष्ट्र निर्माण के लिए इतना महत्वपूर्ण काम में इतना बड़ा योगदान दे रही है।

       दोस्तों आज हमारे समाज में बाबर अली है जो शून्य में से शुरुआत की और दूसरे हैं अजीम प्रेमजी जिनके पास सब कुछ था और इन्होंने शिक्षा के लिए इतना बड़ा योगदान दिया तो मेरी आपसे विनती है कि आप के आस पास अगर कोई ऐसे लोग हैं जो गरीबी के कारण शिक्षा नहीं पा सकते हैं तो प्लीज आप उनकी मदद कीजिए। अगर आप इतने समर्थ हैं कि आप उन को शिक्षा दे सकते हैं तो उनकी जिम्मेदारी भी लीजिए।

"आज के समय में शिक्षा से बड़ा कोई योगदान नहीं है"


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